रविवार, 10 अप्रैल 2016

चाँद के पैरों में छाले पड़ गए हैं


सत्य के होठों पे ताले पड़ गए हैं
चेहरे लोगों के काले पड़ गए हैं

धमनियों में दौड़ता बेरंग पानी
लाग रंग के आज लाले पड़ गए हैं

घर बहुत ही साफ़-सुथरे हैं सभी के
पर दिलों में कितने जाले पड़ गए हैं

देखना कौवे बनेंगे हंस अब तो 
उनके काँधों पे दुशाले पड़ गए हैं 

बैठ इतराते हैं ऊँची टहनियों पर 
मुँह में गिद्धों के निवाले पड़ गए हैं 

हो चुका है गर्म इतना आसमाँ कि 
चाँद के पैरों में छाले पड़ गए हैं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें