रविवार, 10 अप्रैल 2016

घट रीता; कैसे भर पाऊँ



घट रीता;  कैसे भर पाऊँ 
पल बीता; कैसे फिर लाऊँ 

जिस पर तेरा चिह्न नहीं है 
उस पथ पे क्यों कदम बढ़ाऊँ 
भोर अकेला, साँझ उदासी 
रात दुखी, कुछ कर न पाऊँ     

बदल चुका बगिया का मौसम 
कैसे कोपल को समझाऊँ 

कौंधे जब मुस्कान हृदय में 
पुनि पुनि मैं बलिहारी जाऊँ 
काश कभी ऐसा हो जावे 
आँख खुले तो तुमको पाऊँ

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