घट
रीता; कैसे भर पाऊँ
पल
बीता; कैसे फिर लाऊँ
जिस
पर तेरा चिह्न नहीं है
उस पथ पे क्यों कदम बढ़ाऊँ
भोर
अकेला, साँझ उदासी
रात
दुखी, कुछ कर न पाऊँ
बदल
चुका बगिया का मौसम
कैसे
कोपल को समझाऊँ
कौंधे जब मुस्कान हृदय में
कौंधे जब मुस्कान हृदय में
पुनि पुनि मैं बलिहारी जाऊँ
काश
कभी ऐसा हो जावे
आँख खुले तो तुमको पाऊँ
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