बिलोड़ लेने दो समय को
हमारा जीवन-घट,
अलग हो जाने दो
एक एक अवयव ।
एक एक अवयव ।
भँवर के तरंगों पर झूलता हुआ
जो श्रृंग तक पहुंचेगा,
मंथन रूकने पर
वही हमारे द्रव्य की पहचान बनेगा।
तुम आई,
मेरी सुबह अरुणिम
और रातें रुपहली हो गईं
हवाएँ सुगन्धित हो उठीं
साँझ इन्द्रधनुषी हो गई
अच्छा हुआ जो तुम आई
अन्यथा
कितना कुछ
आँखों की पुतलियों पर
मात्र एक कल्पित-बिम्ब सा रह जाता
जीवन कितना खूबसूरत होता है
मैं कभी नहीं जान पाता.
बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंदशहरा की मंगल कामनाएं ...
कम शब्दों में अर्थपूर्ण बात ....बहुत बढ़िया
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