मंगलवार, 29 जून 2010

हाइकु

(1)
घना जंगल
न पौधे न दरख्त
आदमी पस्त

(२)
बढ़ता हाट
बिकने लगे रिश्ते
कैसे जज़्बात ?

(३)
दूर किनारा
घिरने लगी साँझ
नाविक क्रान्त

(४)
ओष्ठ निःशब्द
मुखर हुआ मौन
बढ़ा घनत्व

(५)
पूर्ण ऐश्वर्य
निरंकुश इन्द्रियाँ
कैसे ये संत?

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